Saturday, May 4, 2019

एक कॉल रिश्ते के नाम......

"हेलो, भैया..कैसे हो?"
"मैं एकदम ठीक हूँ तू बता, तू कैसी है?"
"बस माँ बाबूजी की कृपा से सब ठीक हैं...वहा सब कैसे हैं? भाभी और बच्चे कैसे हैं?"
"बस सब ठीक, चल रहा हैं ..मौसम थोड़ा ख़राब हैं न, तो छूट पूट बीमारियां चलती रहती हैं.अच्छा अभी मैं थोड़ा बिजी हूँ, थोड़ा बाद में फ़ोन करूँगा..अपना ध्यान रखना.."
"हाँ भैया!! आप भी!!" वही बात फिर से सुनते हुए रेखा ने निराशा से फ़ोन रख दिया..
कितना सुन्दर था बचपन..भाई बहन एक दूसरे के बिना कुछ करते नहीं थे..आज बात भी जल्दी जल्दी में होती हैं.."एक समय था जब भैया स्कूल में कोई मिठाई फल मिलते तो मेरे लिए बचा कर ले आते और आज महीनो बीत जाते हैं हाल तक पूछने के लिए फ़ोन नहीं करते... हममम बिजी होते होंगे..पर क्या एक फ़ोन भी करने लायक नहीं बचा हमारा रिश्ता…करते तो हैं..बर्थडे पे और वेडिंग एनिवर्सरी पे.... पर आज मैंने फ़ोन किया तोभी विश नहीं किया...भूल गए फिर से!!", रेखा खुद ही इलज़ाम लगाती अपने भैया पर फिर खुद ही उनका बचाव करती..मानो भैया की दोनों तरफा वकील वही हो..
"रेखा क्या कर रही हो..चलना नहीं हैं मूवी के लिए?", विनोद ने ख्यालों में डूबती रेखा को बाहर निकाला...
"अरे मैं तो कब से तैयार बैठी हूँ, आप ही का इंतज़ार कर रही थी…..", अपने ख़यालों की किताब को बंद करते हुए रेखा ने प्यारी सी मुस्कान के साथ कहा.. तभी रेखा के फ़ोन की घंटी बजी...फ़ोन पर "दीदी" का नाम पढ़के फ़ोन उठाने लगी तो विनोद ने कहा “बादमे कर लेना बात..अभी देर हो रही हैं न..”, रेखा ने बिना जवाब दिए ही फ़ोन उठा लिया और विनोद का हाथ पकड़ कर चलने के लिए इशारा किया...
"हैलो दीदी, प्रणाम..कैसी हो आप?"
"हैप्पी वेडिंग एनिवर्सरी आप दोनों को, भाभी!! भैया तो फ़ोन उठाएंगे नहीं इसलिए सिर्फ आप ही को कर दिया!!", एक हलकी सी दुःख की परत के साथ शिकायत परोसदी दीदी ने.. वैसे उनकी भी क्या गलती..वो खुद को उनकी जगह पर रख कर सोचती और उस शिकायत की कड़वी घुट को पी लेती..
"थैंक यू दीदी, कोई और फ़ोन करे न करे आप तो ज़रूर ही करती हैं..आज इतने सालों बाद भी बराबर आप का ही का फ़ोन आता हैं...ये लीजिये आप बात कर लीजिये अपने भैया से..", कहते हुए उसने ज़बरदस्ती फ़ोन विनोद के हाथ में थमा दिया..उसे पता था के इसके बाद होने वाली नाराज़गी वो दूर कर सकती हैं पर एक बहन को भाई के न बात करने वाले दुःख को कोई काम नहीं कर सकता...
बात ख़त्म करके फ़ोन पटकते हुए विनोद ने कहा, "क्या रेखा...मैंने कहा था न के मैं बाद में बात कर लूंगा फिर क्यों अभी फ़ोन पकड़ा दिया..."
"विनोद, मैं नहीं जानती के तुम क्या सोचते हो या तुम्हारा क्या तरीका हैं भाई बहन का रिश्ता निभाने का..एक एडवाइस फिर भी  देना चाहती हूँ..जब भी वो कॉल करे उनसे बात कर लिया करो.. जब भी तुम्हे उनकी याद आये एक कॉल कर दिया करो... एक कॉल और उनका हाल पूछना…... उनका कोई बड़ा दिन हो तो एक कॉल बस इतना ही वो तुमसे चाहती हैं ......आज की दुनिया में सिर्फ एक कॉल ही काफी हैं दूरियां कम करने के लिए .....
पता हैं एक लड़की जिसका सारा बचपन एक घर में बीतता हैं, वो जहा बड़ी होती हैं..उसकी शादी और सात फेरे एक ही झटके में उसे एक दूसरी ही दुनिया में लेजा कर खड़ा कर देते हैं...भलेही वो कितनी ही खुश क्यों न हो अपनी इस नयी दुनिया में वो अपनी पुरानी दुनिया भूल नहीं सकती.......एक बड़ा ही अहम् हिस्सा होता हैं उसके ज़िन्दगी का ...और अगर उस दुनिया से उसे कोई याद न करे तो जो दुःख वह महसूस करती हैं उसकी तुम कल्पना भी नहीं कर पाओगे!!"
"अरे अरे इतना बड़ा भाषण एक कॉल के लिए?? अच्छा बाबा आगे से ऐसा नहीं करूँगा, ओके?", विनोद ने दोनों हाथों से अपने कानो को पकड़ते हुए सॉरी कहा..
रेखा इस बचकानी हरकत पर हंस पड़ी और उसने भी माफ़ी देने के लिए अपने दोनों हाथ ऊपर कर लिए.... दोनों खिलखिला कर हंस पड़े....
विनोद अपने फ़ोन पर रिप्लाई देने में बिजी हो गया तो रेखा को कुछ समय मिला अपनी किताब फिर से खोलने का....अपनी कार की खिड़की में से बाहर देखते हुए उसे सभी पुरानी बातें मानो मौसम के परदे पर साफ़ साफ़ दिखाई देने लगी....कुछ समय ही हुआ था उनकी शादी को..दीदी का फ़ोन विनोद के फ़ोन पर आता रहता था..कभी हफ्ते में एक बार कभी दो हफ्ते में एक बार....तब रेखा को चिढ होती थी के क्यों वो बार बार फ़ोन करती रहती हैं और जब विनोद भी फ़ोन इग्नोर कर देता तो एक हल्का सा सटिस्फैक्शन होता......पता नहीं क्यों और फिर उस सटिस्फैक्शन के ही बाद एक ग्लानि मन में भर जाती और खुद पर ही घिन्न आने लगती.. सोचती के अगर मेरे भैया ऐसा करेंगे तो कितना बुरा लगेगा मुझे....और फिर खुद ही दीदी को फ़ोन लगा बैठती..उनसे खूब बातें करती ताकि अपनी इस सोच का प्रायश्चित कर पाए... साल बीतते गए..सभी के बच्चे बड़े होने लगे, सभी अपनी अपनी ज़िन्दगी में व्यस्त होने लगे..पर रेखा पूरी कोशिश करती के विनोद की दीदी और अपने भैया को कम से कम हफ्ते में एक बार तो कॉल कर ही लिया करे....कभी समय न मिलने के कारण फ़ोन नहीं कर पाती तो दीदी तो फ़ोन कर देती पर भैया का फ़ोन कभी नहीं आता ..आता तो भाभी का.....कभी वो भी भूल जाती..  खुद को यही आश्वासन देती के “सब बिजी होंगे मेरी तरह थोड़े ही सब फ्री होते हैं...और खुद ही फ़ोन लगा देती... “
"चलो उतरो रेखा..थिएटर आ गया..", विनोद ने  फिर उसकी ख्यालों की पतंग की डोर खींची..
"हाँ..शायद झपकी आ गयी थी...", रेखा ने अपने आंसुओं को छुपाते हुए कहा...
पर उन अनकहे शब्दों को आंसुओं के रूप में देख कर विनोद समझ चूका था......उसे पता था रेखा कितना याद करती हैं अपने मायके को.. अपने बचपन को.....और आज रेखा ने उसे भी एहसास दिलाया के कितना ज़रूरी हैं एक कॉल अपने प्यारे से रिश्ते को संभाल कर रखने के लिए ...... उसे अपनी बहन दिखने लगी रेखा के आसुओं में...कितना बुरा लगता होगा दीदी को मेरी इन करतूतों से....... पर अब भूल सुधारनी थी और एक छोटा सा कदम था एक कसम के कमसे कम हफ्ते में एक कॉल तो दीदी को करनी ही हैं ....."आखिर माँ बाबूजी के जाने के बाद हम ही तो हैं उसके मायके में... माँ बाबूजी के साथ उसका मायका थोड़े ही ख़तम हो जाएगा!!"
जब हम एक बहन के रूप में दुःख करती हैं के हमारे मायके से कोई हमे याद नहीं करता तो हमे एक बार अपने भी गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए के क्या हम खुद एक अच्छा मायका बाना पा रहे हैं उन ननद और बुआ के लिए जो हमारे घर से ब्याही गयी हैं?? सोचियेगा ज़रूर!!
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